Posts

Showing posts from 2012
दामिनी इस नपुंसक व्यवस्था के कफ़न में आखिरी कील साबित हो !

राष्ट्रदामाद का पद

# राष्ट्रपिता, राष्ट्रपति के बाद अब राष्ट्रदामाद का पद भी सृजित किया जाना चाहिए .
* हमारा देश अंग्रेजों ने भी इतना न लूटा होगा जितना चोर चोर मोसेरे भाइयों ने लूटा है .

आखिर इस देश का मालिक कौन है ?

देश में कानून का दिवाला पिट गया लगता है. देश का कानून मंत्री भी गुंडों की तरह धमकियां देने लगा है . फिर भी मोहन मौन है . आखिर इस देश का मालिक कौन है ?
कुर्सी पाने व बचाने के चक्कर में दामादों को देश लुटा रहे हैं.

शादी किस उम्र में होनी चाहिए

*शादी किस उम्र में होनी चाहिए, कौन तय करेगा - खाप, चौटाला या सरकार ? परिवार को ही तय करने दो न !
* अब आम आदमी भी टोपी पहनने लगा है .
जागो~ ~ जागो ~ ~ ~मोहन~ प्यारे ~ ~
50 से 3000 कैसे बनाये कोई हमें भी तो समझाये
# यह दामाद किस किस का है ?
* एक ईमानदार को ढाल बनाकर अनेक बेईमान इस देश को लूट रहे हैं .
ईमानदार में नैतिकता तो होती होगी ?

वस्त्रहीन होना अगर अश्लीलता है तो

वस्त्रहीन होना अगर अश्लीलता है तो १. जैन समाज में इसे किस रूप में देखा जाता है ? २. नागाओं की वस्त्रहीनता को क्या कहा जाएगा ?

प्रतिबन्ध हमें मंजूर नहीं .

प्रतिबन्ध हमें मंजूर नहीं . -------------------------- किसी भी तरह की आज़ादी पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए . अफवाहों का प्रतिकार किया जाना चाहिए . अफवाह फ़ैलाने वाले स्वयं अपनी विश्वसनीयता खो देंगे . हाँ, सोशल मीडिया में फेक आईडी कायम न हो, इसके लिए ज़रुरी प्रबंध हों .
"बेटी बचाओ" यह नारा आज आम है . बेटों के बारे में क्या विचार है ?
काला धन नहीं नहीं कोयला धन
* अन्धविश्वास अपनाना अपनी सोच के कदमों को रोकना है .
इस देश को कौन चला रहा है, कोई हमें भी तो बताये. या हमें यह जानने का अधिकार ही नहीं है .
काश ! मायावती ने जो पैसा मूर्तियों में लगाया, वह गरीबों को रोजगार देने में लगाया होता .
सदन को जो चलाना चाहे, कहीं से भी चलाए. पर माईक को तो बंद कर दिया करो मेरे भाए.
* ईमानदार व्यक्ति को किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती .
#    इंसान होना, अल्पसंख्यक है क्या ?
* ईमानदार व्यक्ति को कष्ट झेलने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए .
* व्यक्ति की असली पहचान उसके कर्मों से होती है, दिखावे से नहीं .
दाल, सब्जी नहीं खायी जाती,  घर पे नहीं बना सकते,  कोई बात नहीं मोबाइल लीजिये,  फ़ोन कीजिये, होटल से मंगा के खाईये,  हो गयी न गरीबी दूर .

क्या लोक संसद ही व्यवस्था परिवर्तन है ? -- बजरंग मुनि

क्या लोक संसद ही व्यवस्था परिवर्तन है ?                                                            ------ बजरंग मुनि                आज भी भारत में बहुत लोग ऐसे हैं जो रामराज्य के समर्थक हैं। गांधी जी भी रामराज्य को आदर्श स्थिति मानते थे। रामराज्य का अर्थ है सुराज्य अर्थात अच्छे व्यक्ति का शासन। प्रश्न उठता है कि राम के काल में सुशासन था तो रावण का कुशासन भी तो राम के ही कालखण्ड में था। तो क्या उस समय सुशासन या कुशासन राजा की इच्छा पर निर्भर करता था तथा जनता की उसमें कोई भूमिका नहीं थी? क्या राजा पूर्ण तानाशाह था? और यदि वास्तव मे राम के काल मे ऐसा ही था तो हमे ऐसा राम राज्य नही चाहिये। चाहे ऐसे रामराज्य की प्रशंसा गांधी करे या अन्ना हजारे।               व्यवस्था तीन प्रकार की होती है (1) राजतंत्र या तानाशाही (2) लोकतंत्र (3) लोक स्वराज्य। तानाशाही में शासन का संविधान होता है। लोकतंत्र में संविधान का शासन होता है किन्तु संविधान निर्माण में लोक और तंत्र की मिली जुली भूमिका होती है। लोक स्वराज्य में लोक द्वारा निर्मित संविधान का शासन होता है। पश्चिम के देशों में लोक स्वराज्य की दिशा में
'निंदक नियरे राखिये' यानि विरोधियों को नज़दीक ही राख़ कर दीजिये .
आखिर कांग्रेस हित में अन्ना आन्दोलन का समापन हुआ. पैदा भी कांग्रेस द्वारा ही कराया गया था. क्या आप जानते हैं ?
'न 9 मन तेल होगा न राधा नाचेगी' में राधा ने 9 मन तेल माँगा होगा क्या नाचने के लिए ?

अपनी डफली

सब अपनी डफली अपने राग पे लग गये हैं.  अब अपनी डफली कोई किसी को क्यों देगा,  पहले किसी की डफली किसी ने तोड़ दी होगी.
मस्त आँखों के पियो जाम ****************************** ******** पीके आँखों से लगी दिल की बुझा लेता हूँ  माशुका तेरी कसम, तुझको दुआ देता हूँ  तेरी मदमस्त निगाहों ने कर्म मुझपे किया  ज़िन्दगी भर न अपना मुझे कुछ होश रहा पीके मैं जाम नशीले तेरे, जी लेता हूँ माशुका तेरी कसम, तुझको दुआ देता हूँ छोड़ दो पीना शराब अब तो ये मेरे यारो मस्त आँखों के पियो जाम नशीले, यारो अब कहां सब्र मुझे, मैं तो पिए लेता हूँ माशुका तेरी कसम, तुझको दुआ देता हूँ तेरी आँखों में मिला मुझको मिरे गम का इलाज अब न 'अर्पित' सिवा तेरे मिरा कोई आज जानकर तुझको मसीहा, ये दवा लेता हूँ माशुका तेरी कसम, तुझको दुआ देता हूँ . ------------------------------ ----------------अर्पित अनाम
हम जियें भी तो जियें कैसे बताओ 'अर्पित' ********************************************** बेवफा छत पे मुझे देखने आया न करो दिल को अब और मिरे यूँ तो सताया न करो प्यार आता है मुझे जिसपे, वो अपनी सूरत मुझको छुप-छुप के यूँ तरसा के दिखाया न करो जब नहीं पास तुम्हारे, मिरे ज़ख्मों का इलाज़ दुखती रग को तो मिरी छेड़ के जाया न करो हम जियें भी तो जियें कैसे बताओ 'अर्पित' उनके कूचे में, वो कहते हैं कि आया न करो. ================================अर्पित अनाम
हर व्यक्ति को ऐसा व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए, जिससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन न हो .
आरजू है बस यही **************************** खुश रहोगे तुम तो मैं भी खुश रहूँगा, ऐ सनम  देखकर चेहरा तुम्हारा मैं जियूँगा, ऐ सनम  जां निकल जाती है मेरी देखकर तुमको उदास  दुख न इक पल भी तुम्हारा सह सकूंगा, ऐ सनम चाँद सा चेहरा, गुलाबी होंठ, ज़ुल्फें रेशमी और भी निखरें, दुआ दिल से करूंगा, ऐ सनम आरजू है बस यही 'अर्पित' कि तुम सुख से रहो जाम सेहत के तुम्हारी मैं भरूँगा, ऐ सनम +++++++++++++++++++++++++++++ अर्पित अनाम
मान जाना याद है  ****************************** ** तेरा अंदाज़ ऐ सनम वो कातिलाना याद है  और रह-रह कर तिरा वो मुस्कराना याद है  बैठना मिलजुल के तेरा, रूठ जाना फिर तिरा  रूठ कर फिर जाने-जाना मान जाना याद है याद आती हैं मुझे रह-रह के तेरी शोखियाँ छेड़कर मुझको वो तेरा खिलखिलाना याद है एकदम खामोश हूँ, तब पास मेरे बैठना और गुमसुम होके यूँ, जी को जलाना याद है देखना, आदाब करना, मुस्कराना, ऐ सनम और आंचल में तिरा वो मुंह छुपाना याद है तोडकर गुल को मसलना, फिर उठाकर फेंकना दिल पे 'अर्पित' मुझको उनका ज़ुल्म ढाना याद है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~अर्पित अनाम
हो तेरा इन्साफ़ 'अर्पित' एक सा सब के लिए  ++++++++++++++++++++++++++++++++ ढूँढने से क्या मिलेगा वो किसी इन्सान को कर कोई तू काम ऐसा, खुश करे भगवान को मन्दिरो-मस्जिद दुखी हैं यूँ की उनके नाम पर मिल गई है छूट नर संहार की शैतान को सोचिये गिरिजाघरों में सर झुकाकर क्या मिला और गुरु द्वारों में जाकर क्या मिला श्रीमान को कर भला औरों का, तेरा भी भला हो जाएगा तू अगर इन्सान है तो त्याग दे अभिमान को हो तेरा इन्साफ़ 'अर्पित' एक सा सब के लिए निर्धनों को दे वही इन्साफ़ जो धनवान को **********************************************अर्पित अनाम
किस तरह ज़िन्दा हो तुम  ****************************** ********** बेवफाई का गिला हमने जो उनसे कर दिया दोष इसका हाय, हम पर ही उन्होंने धर दिया  मुस्करा कर तो कभी चुप साध कर प्रतिवाद में  मेरे हर आरोप का खंडन उन्होंने कर दिया  दिल की चोरी और उस पर सीनाज़ोरी, ऐ सनम  आपने तो मात सबको इस कला में कर दिया प्यार से मरहम लगाने की जगह बेदर्द ने, लेके चुटकी में नमक, ज़ख्मों में मेरे भर दिया आप की नज़रों में ठहरा एक मुज़रिम इसलिए आपने मुझको गिरफ्तार-ए-मुहब्बत कर दिया मुझको हैरत है की 'अर्पित' किस तरह ज़िन्दा हो तुम इश्क में पड़कर जो तुमने ओखली में सर दिया . ++++++++++++++++++++++++++++++ +++++++++ अर्पित अनाम
देखो आज उठ नहीं रही है उनकी आंख मेरे सामने इंसाफ की जो बात करके मिले गये हैं जुल्मियों से
त्याग ही जीवन है.

इस जहाँ में अब नहीं कोई भी तो 'अर्पित' तेरा

सामने बैठी हो क्यों तुम दिल दुखाने के लिए बात ही  कोई न  हो  जब  मुस्कराने  के लिए दिल तो करता है मेरा अब फोड़ लूँ मैं अपना सर और मिल जाये कहीं से ज़हर खाने के लिए तुम ही कहती थी कभी मुझको न यूँ देखा करो छोड़ दो मुझको अकेला टूट जाने के लिए झुकना उठना हाथ तेरे ही तो था ऐ संगदिल सब लुटा, अब क्या रहा है सर उठाने के लिए नाज़ था जिसपर मुझे, इक प्यार का सागर था जो खाई है सौगन्ध उसने यूँ सताने के लिए इस जहाँ में अब नहीं कोई भी तो 'अर्पित' तेरा चल किसी दरिया में अब तो डूब जाने के लिए --------------------------------------------------अर्पित अनाम --------------------------------
ठोकरें ही चलना सिखाती हैं 
मैं हिंसा में विश्वास नहीं रखता . अहिंसक संघर्षप्रेमी हूँ .
कुछ व्यक्तियों में भड़काने  की 'कला' होती है.

नादान आजकल पाखण्ड का ज़माना

*************** शीशे को तोड़ देंगे बेरहम दुनिया वाले जीना अगर है तुझको पत्थर जिगर बनाले हो नेक आदमी तो कहते हैं लोग पागल शैतान बन जा तू भी माथे तिलक लगाले नादान आजकल है पाखण्ड का ज़माना तू भी जटा बढ़ा ले, धूनी कहीं रमा ले इन्सान बनके काफ़िर कहला रहा है क्यों तू तस्बीह भी घुमाले, कृपाण भी उठाले अपनी ही जान देने में क्या है अक्लमंदी उन ज़ालिमों को 'अर्पित' उनकी तेरह सताले -------------------------------------------------अर्पित अनाम
थी ख़बर गर्म कि गालिब के उड़ेंगे पुरज़े देखने हम भी गए थे पर तमाशा ना हुआ
जो जितना बड़ा भगत होने का दिखावा करता है, वह उतना ही बड़ा ठगत होता है ?

मत रोको तुम उनको

सर मेरा दीवारों से टकराने दो इस दिमाग को अब तो बस फट जाने दो जिंदा रह के आखिर क्या कर पाऊंगा अब न रोको मुझको तुम मर जाने दो ख़ुशी नहीं जब कोई भी अब शेष रही गीत विरह के गाता हूँ तो गाने दो तुमको क्या है उनको क्यों कुछ कहते हो गम का मेरे उनको जश्न मनाने दो मिलता है गर चैन उन्हें कुछ 'अर्पित' यूँ मत रोको तुम उनको,    खूब सताने दो . ***** अर्पित अनाम
कुर्बानियां देने का ठेका ही हमारे पास है हक पराया लूट लें वो इसकी उनको आस है --अर्पित अनाम
ज़हर क्यों हिस्से हमारे आ रहा है जिसने बोये कांटे अमृत पा रहा है --अर्पित अनाम
उसूल भी कभी कभी कमजोरी बन जाते हैं . --अर्पित अनाम
आह ! नीचता की सब हदें तो कर गये हैं पर वो  इससे ज़्यादा क्या गिरेंगे गर्त में वे अब अधम --अर्पित अनाम
बुराई वे करें, बदनामियाँ हिस्से मेरे आएं अच्छाई हम करें, शाबासियां वे लूट ले जाएं --अर्पित अनाम
हे भगवन यदि इन्सां बुरे तूने बनाये हैं तो मुजरिम तू भी है सच की हमारी इस अदालत का --अर्पित अनाम

सच के सहारे

सच के सहारे देर से ही सही जीत सुखदायक होगी
मैं एक ऐसे आदमी को जानता हूँ जो लम्बा तिलक लगाये,  माला हाथ में लेकर 'कृष्ण-कृष्ण' जपता रहता है और  साथ ही  काम कपटपूर्ण करता रहता है .  ऐसा क्यों ? 

अच्छाई

मुझे अच्छाई पसंद हैं. अच्छाई भले ही किसी बुरे व्यक्ति से ही क्यों न मिले,  उसे ग्रहण करने में मैं कोई बुराई नहीं मानता हूँ .

तो करते क्यों हैं ?

कुछ लोग दूसरों से तो भरपूर मजाक कर लेते हैं किन्तु यदि कोई उनसे मजाक करने की गुस्ताखी कर बैठे तो वे गाली गलोच तक पर उतर आते हैं . ऐसा क्यों ? यदि हम मजाक सह नहीं सकते तो करते क्यों हैं ?
कई बार लोग क्या कहते हैं -- ''उसका 'दिमाग' पागल हो गया है" .... तब मैं कहता हूँ , "नहीं उसकी 'नाक' पागल हुई है"....

आग

इक आग धधकती है भीतर कुछ धुआं धुआं सा उठता है जब सामने होता अन्याय तो रुआं रुआं सा उठता है . ---अर्पित अनाम
हमारा किसी पर हंसना हमारी अज्ञानता का प्रतीक होता है . ---अर्पित अनाम
निस्वार्थ व्यवहार का नाम मित्रता है . --अर्पित अनाम
हे प्रभु, मुझे विप्तियाँ प्रदान कर, जिनसे संघर्ष कर मैं अनुभव प्राप्त कर सकूं . -अर्पित अनाम
किसी भी व्यक्ति की आत्मा गलत कार्य करने की अनुमति नहीं देती. ----अर्पित अनाम

अन्ना का थप्पड़

अन्ना का थप्पड़ किस-किस को पड़ेगा ? भ्रष्टाचार हिन्दोस्तान की नस-नस में फ़ैल चुका है .

व्यवहार

जिससे अपने लिए जैसे व्यवहार की इच्छा हो उससे वैसा ही व्यवहार करो ! ----अर्पित अनाम
बिन किये कर्म अच्छे, नहीं उद्दार होगा अटके दुष्कर्म से बेड़ा, नेक से पार होगा -----अर्पित अनाम

आग धधकती है

सब कुछ सह सकता हूँ मैं, अन्याय मुझे स्वीकार नहीं  इसलिए तो आग धधकती है, मैं झूठ का पहरेदार नहीं  ----अर्पित अनाम
जीने भी नहीं देते हैं मरने भी नहीं देते  यारब तेरी दुनिया के ये लोग किस तरह के  ----अर्पित अनाम
चुप रहना ही है भला जब तक मन निष्प्राण कहने को तो बहुत कुछ दिल में हैं अरमान ----अर्पित अनाम

आधे मूर्ख

मेरे एक मित्र हैं रायपुर के श्री रोशन लाल अग्रवाल जी. एक बार एक सभा में उन्होंने कह दिया- "यहाँ आधे लोग मूर्ख हैं". सभा में हंगामा हो गया.  उन पर अपने शब्द वापिस लेने का दबाव बनाया गया. आखिर उन्होंने अपने शब्द वापिस लेते हुए कहा- "यहाँ आधे लोग मूर्ख नहीं हैं".
हैवानियत से इस जहां में अनजान कोई न मिला  खोजने तो थे फरिश्ते, इंसान कोई न मिला  आश्रमों में मिल जाएं आडम्बर ओढ़े बहुतेरे रावण ओ' कंसों को मरे भगवान कोई न मिला  शेर घूमता रहा शिकारियों की खोज में  मरने को बेचैन था मचान कोई न मिला उमड़ते रहते हैं यूँ टूटे हृदय में हर वक्त टकराए जो आहों से तूफान कोई न मिला ज़ख्मी ये सीना पड़ा है तीर भी अब पास हैं छोड़ दें हम भी मगर कमान कोई न मिला अज़ब ये दुनिया हुई है अज़ब इसकी दास्तां हैं सहज सब ही यहां हैरान कोई न मिला ---------------अर्पित अनाम---------------
मानवों से आज मानव हो रहा बेहाल है  भूल मानव धर्म अपना दुष्ट चलता चाल है  कुछ व्यवस्था ही बनी ऐसी कि हैं भयभीत सब  रक्षकों का यूँ तो कहने को बिछा इक जाल है  यूँ अकड़ कर चल रहे मनो खुदा हैं बस वही  हैं भली टांगें मगर टेढ़ी ही टेढ़ी चाल है बेबसी का घोंट कर दम खून सारा पी लिया पेट काटे जो पराये आज वह प्रतिपाल है साथ देने की सदा सुनकर तो आए वह मगर सुर में सुर कैसे मिले जो बेसुरी सी ताल है शक भी कोई क्या करे 'अर्पित' भी अर्पित हो गया एक दाना ही नहीं काली ही सारी दाल है . --------------अर्पित अनाम----------
फूट डालो और राज करो की नीति का सर्वाधिक उपयोग औरतें करती हैं .

नेक कर्म

कर्म करले नेक फिर बीता न कोई पल मिले  होगा जैसा कर्म जिसका वैसा उसको फल मिले  दुश्चरित्रों की भी सह लो है इसी में उच्चता बल न सहने का यदि तो घुन-घृणा को बल मिले रास यदि आई न दुनिया तो रुदन यह किसलिए  हर समस्या का यहाँ संघर्ष ही से हल मिले आग लग जाने पे खोदा भी तो क्या खोदा कुआं बात तो तब है शमन को आग के जब जल मिले लाख गहराई में ढूंढो श्रम है वो सारा वृथा हाथ मोती क्या लगे जब तक न जल का तल मिले जीत सकते हो हृदय 'अर्पित' सरल व्यवहार से बात अचरज की नहीं जो छल के बदले छल मिले --अर्पित अनाम www.arpitanaam.facebook.com

धड़कन बन के आजा

कहां है कहां है तू ये तो बता जा सुरीली सी धुन में कोई गीत गा जा अदाएं नशीली सी जब आएं मन में ख़ाबों की यादें वो लगती खटकने वो मोहिनी सी सूरत तू आ के दिखाजा सुरीली सी धुन में कोई गीत गा जा हैं सूनी ये राहें बिना तेरे दिलबर मैं गिरता ही जाता हूँ बिन तेरे पल-पल दे सदा हाय मुझको या खुद पास आजा सुरीली सी धुन में कोई गीत गा जा वो तेरी सदा थी तू मेरी मैं क्या हूँ ये वो राज़ है जिसपे 'अर्पित' हुआ हूँ दिल बनके आऊँ धड़कन बन के आजा सुरीली सी धुन में कोई गीत गा जा                                          -अर्पित अनाम
उनकी बला से, दूसरा चाहे मरे चाहे जिए मजबूरियों का फायदा, उनसे उठाना सीखिए आता नहीं हमको नजर शहतीर अपनी आंख का क्यों दूसरों की आंख में तिनका सदा ढूंढा किये उनके सिवा सब हैं बुरे, सारे जहाँ में देख लो कहने का उनके हर यही मतलब निकलता किसलिए क्या दमन होगा इससे ज्यादा, बोलने पर रोक है फरियाद किससे और कैसे क्या किये रे क्या किये तू सोचले 'अर्पित' मिलेगा ये सिला ही हर तरफ बदनामियाँ ही आयेंगी हिस्से, भला जितना किये
to ye petant
एलेक्स को चाहिए कि अपने दिवगंत सुरक्षा कर्मी के घर जाकर सांत्वना दे और सहयोग करे .
in aankhon mein mere jaisi ye do moorten hain kis-kis ki, zra ye to bta ik to main hun teri ik aankh mein dooji mein kaun 'arpit' hai mere siwa.
वे रूठे तो हर बार मनाया हमने उनसे तो इकबार भी हमें मनाया न गया
भारतीय मुद्रा पर गाँधी के चित्र के स्थान पर सुभाष बोस, भगत सिंह के चित्र भी प्रकाशित होने चाहियें .
बहुत सोचता हूँ कि कुछ सोच लूँ मगर सोचते-सोचते थक गया हूँ 
क्या भारत में अमीरी गरीबी की खाई लगातार बढ़ रही है ? १. हाँ २. नहीं ३. पता नहीं
रुसवाइयां दुनिया की हम जिनके लिए सहते रहे दामन वही हमसे बचा कर बेवफा रहते रहे .
उ. प्र. में माया मिली न राम
रामदेव को अपनी सेना को छोडकर भागने के लिए कुछ तो सजा मिलनी चाहिए थी ... ?
कोर्ट का હથોડા अब लगा थोडा

गणतन्त्र

क्या हमारा गणतन्त्र अधूरा है ?

अन्ना का थप्पड़

अन्ना का थप्पड़ किस-किस को पड़ेगा ? भ्रष्टाचार हिन्दोस्तान की नस-नस में फ़ैल चुका है .

जूतम-पैजार

जो जनता के खिलाफ काम करे उसे भी जूते, जो जनता की आवाज उठाये उसे भी जूते . यह जूतम-पैजार बंद होनी चाहिए .
क्यों डर रहे हो सलमान रश्दी से, खा तो नहीं जाएगा, आने दो !

विक्षिप्त मानसिकता

जूता, चप्पल, थप्पड़, स्याही विक्षिप्त मानसिकता की परिचायी करके कुछ दिखलाया होता तब मिलती इनको वाहवाही
अन्ना हजारे हुए बेचारे !
कुशवाहा ! कुश ! वाहा ! कुशवा ! हा !