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Showing posts from 2009

सच बोलना खतरनाक है यहां

सच बोलना खतरनाक है यहां । सच बर्दाश्त नहीं किया जाता । बेबाक रूप से विचार प्रकट करना यहां खतरे से खाली नहीं । यहां लोग वही सुनना चाहते हैं , जो उन्हें पसंद होता है ।

चुनाव में पैसा प्रधान

चुनाव में पैसा प्रधान हो गया है । शराफत, ईमानदारी पीछे छूट गई है । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शरीफों में बिखराव है । यदि शरीफ एकजुट हो जाएं तो निश्चित ही शराफत, ईमानदारी की कीमत बढ़ जाए ।

शरीफ़ो एक हो जाओ

देशभर के शरीफ़ो एकजुट हो जाओ । गुंडों ने गिरोह बना रखे हैं । शरीफ़ लोग क्यों नहीं बनाते । गुंडे गिरोह बनाकर शरीफ़ो का जीना दुश्वार किए रहते हैं । शरीफ़ आत्मरक्षा के लिए भी इकट्ठे नहीं हो सकते, क्यों ?

बेसब्री से इंतजार

भारत की जन समस्याओं से चिंतिंत कुछ व्यक्तियों द्वारा यह देख परख कर कि किसी भी राजनैतिक पार्टी को इन समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है और वे केवल सत्ता को व्यापार के रूप में अपनाकर कार्य कर रही हैं, एक शोध में इन्हें हल करने के उपायों को खोजकर एक विस्तृत योजना बनाई गई है । इस योजना के क्रियान्वयन के लिए ऐसे व्यक्तियों कि टीम तैयार कि जा रही है जो इन समस्याओं को हल करने के प्रति गम्भीर हों । यदि आपके मन भी ऐसी ही कसक है और आप वर्तमान व्यवस्था से असंतुष्ट हैं तो हम आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं । आइये, इस निराशाजनक व्यवस्था को बदलने में हम सब मिलजुलकर कार्य करें ।

क्या घड़ा अभी भरा नहीं

अपराधी किस्म के लोग राज कर रहे हैं और शरीफ लोग घरों में दुबक कर बैठे हैं । ये शरीफ लोग किस बात का इंतजार कर रहे हैं । क्या घड़ा अभी भरा नहीं है ?

जीत कर भी हारता है इंसान

कई बार एक व्यक्ति को एक ही समय कई-कई मोर्चों पर लडाई लड़नी पडती है । अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में घिरे व्यक्ति को अपनों से भी युद्घ करना पड़ता है । इस युद्घ में वह जीत भी सकता है और हार भी सकता है । किंतु इस जीतने और हारने दोनों में उसकी हार ही होती है ।

निराशाजनक व्यवस्था

भारत की वर्तमान व्यवस्था बहुत ही निराशाजनक हो गई है । सारी शक्ति ऊपर बैठे चंद हाथों में सिमट कर रह गई है । नीचे बैठे लोग अक्सर ज्यादती का शिकार होते रहते हैं और कुछ नहीं कर पाकर मन मसोस कर रह जाते हैं । आख़िर कब तक होगा ऐसा ?
सच बोलूं जो तब तो शामत आती है । चुप रहना भी नागवार गुज़रे है मुझे ॥ - अर्पित अनाम
बन्दा उम्र बढ़ने के साथ - साथ व्यवहारिक हुआ जाता है । भावुकता पीछे छूटने लगती है । अनुभव की ठोकरें सिखा-सिखा कर परिपक्व बना देती हैं । - अर्पित अनाम

अच्छे लोगो ! राजनीति में आइये

' राजनीति गंदी चीज है', गंदे लोगों द्वारा अच्छे लोगों को राजनीति में आने से रोकने के लिए प्रचारित किया गया यह संदेश अच्छे लोगों द्वारा भी जाने अनजाने आगे बढ़ाया जा रहा है । गंदे लोगों की इस साजिश को बेनकाब करना होगा। समाज व देश को गंदे लोगों की इस साजिश का शिकार हो ते रहने से बचाना है । अब और नहीं । समाज व देश का ठेका इन्ही गंदे लोगों के पास रहे, अब यह नहीं चलेगा । अच्छे लोगों को राजनीति में आना होगा । मैं अच्छे लोगों को पुकारता हूँ । आइये, राजनीति में आइये । इस चुनौटीपूर्ण कार्य को हाथ में लेकर यह सिद्ध करके दिखाइए कि गंदे लोगों द्वारा इस समाज व देश का जितना नुकसान किया गया है, उससे कहीं ज्यादा फायदा अच्छे लोगों द्वारा प्रयास करके पहुँचाया जा सकता है । - अर्पित अनाम

अर्पित अनाम उवाच !

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