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Showing posts from June, 2012
कुर्बानियां देने का ठेका ही हमारे पास है हक पराया लूट लें वो इसकी उनको आस है --अर्पित अनाम
ज़हर क्यों हिस्से हमारे आ रहा है जिसने बोये कांटे अमृत पा रहा है --अर्पित अनाम
उसूल भी कभी कभी कमजोरी बन जाते हैं . --अर्पित अनाम
आह ! नीचता की सब हदें तो कर गये हैं पर वो  इससे ज़्यादा क्या गिरेंगे गर्त में वे अब अधम --अर्पित अनाम
बुराई वे करें, बदनामियाँ हिस्से मेरे आएं अच्छाई हम करें, शाबासियां वे लूट ले जाएं --अर्पित अनाम
हे भगवन यदि इन्सां बुरे तूने बनाये हैं तो मुजरिम तू भी है सच की हमारी इस अदालत का --अर्पित अनाम

सच के सहारे

सच के सहारे देर से ही सही जीत सुखदायक होगी
मैं एक ऐसे आदमी को जानता हूँ जो लम्बा तिलक लगाये,  माला हाथ में लेकर 'कृष्ण-कृष्ण' जपता रहता है और  साथ ही  काम कपटपूर्ण करता रहता है .  ऐसा क्यों ? 

अच्छाई

मुझे अच्छाई पसंद हैं. अच्छाई भले ही किसी बुरे व्यक्ति से ही क्यों न मिले,  उसे ग्रहण करने में मैं कोई बुराई नहीं मानता हूँ .

तो करते क्यों हैं ?

कुछ लोग दूसरों से तो भरपूर मजाक कर लेते हैं किन्तु यदि कोई उनसे मजाक करने की गुस्ताखी कर बैठे तो वे गाली गलोच तक पर उतर आते हैं . ऐसा क्यों ? यदि हम मजाक सह नहीं सकते तो करते क्यों हैं ?
कई बार लोग क्या कहते हैं -- ''उसका 'दिमाग' पागल हो गया है" .... तब मैं कहता हूँ , "नहीं उसकी 'नाक' पागल हुई है"....

आग

इक आग धधकती है भीतर कुछ धुआं धुआं सा उठता है जब सामने होता अन्याय तो रुआं रुआं सा उठता है . ---अर्पित अनाम
हमारा किसी पर हंसना हमारी अज्ञानता का प्रतीक होता है . ---अर्पित अनाम
निस्वार्थ व्यवहार का नाम मित्रता है . --अर्पित अनाम
हे प्रभु, मुझे विप्तियाँ प्रदान कर, जिनसे संघर्ष कर मैं अनुभव प्राप्त कर सकूं . -अर्पित अनाम
किसी भी व्यक्ति की आत्मा गलत कार्य करने की अनुमति नहीं देती. ----अर्पित अनाम

अन्ना का थप्पड़

अन्ना का थप्पड़ किस-किस को पड़ेगा ? भ्रष्टाचार हिन्दोस्तान की नस-नस में फ़ैल चुका है .

व्यवहार

जिससे अपने लिए जैसे व्यवहार की इच्छा हो उससे वैसा ही व्यवहार करो ! ----अर्पित अनाम
बिन किये कर्म अच्छे, नहीं उद्दार होगा अटके दुष्कर्म से बेड़ा, नेक से पार होगा -----अर्पित अनाम

आग धधकती है

सब कुछ सह सकता हूँ मैं, अन्याय मुझे स्वीकार नहीं  इसलिए तो आग धधकती है, मैं झूठ का पहरेदार नहीं  ----अर्पित अनाम
जीने भी नहीं देते हैं मरने भी नहीं देते  यारब तेरी दुनिया के ये लोग किस तरह के  ----अर्पित अनाम
चुप रहना ही है भला जब तक मन निष्प्राण कहने को तो बहुत कुछ दिल में हैं अरमान ----अर्पित अनाम

आधे मूर्ख

मेरे एक मित्र हैं रायपुर के श्री रोशन लाल अग्रवाल जी. एक बार एक सभा में उन्होंने कह दिया- "यहाँ आधे लोग मूर्ख हैं". सभा में हंगामा हो गया.  उन पर अपने शब्द वापिस लेने का दबाव बनाया गया. आखिर उन्होंने अपने शब्द वापिस लेते हुए कहा- "यहाँ आधे लोग मूर्ख नहीं हैं".
हैवानियत से इस जहां में अनजान कोई न मिला  खोजने तो थे फरिश्ते, इंसान कोई न मिला  आश्रमों में मिल जाएं आडम्बर ओढ़े बहुतेरे रावण ओ' कंसों को मरे भगवान कोई न मिला  शेर घूमता रहा शिकारियों की खोज में  मरने को बेचैन था मचान कोई न मिला उमड़ते रहते हैं यूँ टूटे हृदय में हर वक्त टकराए जो आहों से तूफान कोई न मिला ज़ख्मी ये सीना पड़ा है तीर भी अब पास हैं छोड़ दें हम भी मगर कमान कोई न मिला अज़ब ये दुनिया हुई है अज़ब इसकी दास्तां हैं सहज सब ही यहां हैरान कोई न मिला ---------------अर्पित अनाम---------------
मानवों से आज मानव हो रहा बेहाल है  भूल मानव धर्म अपना दुष्ट चलता चाल है  कुछ व्यवस्था ही बनी ऐसी कि हैं भयभीत सब  रक्षकों का यूँ तो कहने को बिछा इक जाल है  यूँ अकड़ कर चल रहे मनो खुदा हैं बस वही  हैं भली टांगें मगर टेढ़ी ही टेढ़ी चाल है बेबसी का घोंट कर दम खून सारा पी लिया पेट काटे जो पराये आज वह प्रतिपाल है साथ देने की सदा सुनकर तो आए वह मगर सुर में सुर कैसे मिले जो बेसुरी सी ताल है शक भी कोई क्या करे 'अर्पित' भी अर्पित हो गया एक दाना ही नहीं काली ही सारी दाल है . --------------अर्पित अनाम----------
फूट डालो और राज करो की नीति का सर्वाधिक उपयोग औरतें करती हैं .

नेक कर्म

कर्म करले नेक फिर बीता न कोई पल मिले  होगा जैसा कर्म जिसका वैसा उसको फल मिले  दुश्चरित्रों की भी सह लो है इसी में उच्चता बल न सहने का यदि तो घुन-घृणा को बल मिले रास यदि आई न दुनिया तो रुदन यह किसलिए  हर समस्या का यहाँ संघर्ष ही से हल मिले आग लग जाने पे खोदा भी तो क्या खोदा कुआं बात तो तब है शमन को आग के जब जल मिले लाख गहराई में ढूंढो श्रम है वो सारा वृथा हाथ मोती क्या लगे जब तक न जल का तल मिले जीत सकते हो हृदय 'अर्पित' सरल व्यवहार से बात अचरज की नहीं जो छल के बदले छल मिले --अर्पित अनाम www.arpitanaam.facebook.com