हैवानियत से इस जहां में अनजान कोई न मिला 
खोजने तो थे फरिश्ते, इंसान कोई न मिला 
आश्रमों में मिल जाएं आडम्बर ओढ़े बहुतेरे
रावण ओ' कंसों को मरे भगवान कोई न मिला 
शेर घूमता रहा शिकारियों की खोज में 
मरने को बेचैन था मचान कोई न मिला
उमड़ते रहते हैं यूँ टूटे हृदय में हर वक्त
टकराए जो आहों से तूफान कोई न मिला
ज़ख्मी ये सीना पड़ा है तीर भी अब पास हैं
छोड़ दें हम भी मगर कमान कोई न मिला
अज़ब ये दुनिया हुई है अज़ब इसकी दास्तां
हैं सहज सब ही यहां हैरान कोई न मिला
---------------अर्पित अनाम---------------

Comments

Popular posts from this blog