इस जहाँ में अब नहीं कोई भी तो 'अर्पित' तेरा

सामने बैठी हो क्यों तुम दिल दुखाने के लिए
बात ही  कोई न  हो  जब  मुस्कराने  के लिए
दिल तो करता है मेरा अब फोड़ लूँ मैं अपना सर
और मिल जाये कहीं से ज़हर खाने के लिए
तुम ही कहती थी कभी मुझको न यूँ देखा करो
छोड़ दो मुझको अकेला टूट जाने के लिए
झुकना उठना हाथ तेरे ही तो था ऐ संगदिल
सब लुटा, अब क्या रहा है सर उठाने के लिए
नाज़ था जिसपर मुझे, इक प्यार का सागर था जो
खाई है सौगन्ध उसने यूँ सताने के लिए
इस जहाँ में अब नहीं कोई भी तो 'अर्पित' तेरा
चल किसी दरिया में अब तो डूब जाने के लिए
--------------------------------------------------अर्पित अनाम --------------------------------

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