हम जियें भी तो जियें कैसे बताओ 'अर्पित'
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बेवफा छत पे मुझे देखने आया न करो
दिल को अब और मिरे यूँ तो सताया न करो
प्यार आता है मुझे जिसपे, वो अपनी सूरत
मुझको छुप-छुप के यूँ तरसा के दिखाया न करो
जब नहीं पास तुम्हारे, मिरे ज़ख्मों का इलाज़
दुखती रग को तो मिरी छेड़ के जाया न करो
हम जियें भी तो जियें कैसे बताओ 'अर्पित'
उनके कूचे में, वो कहते हैं कि आया न करो.
================================अर्पित अनाम

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