नादान आजकल पाखण्ड का ज़माना

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शीशे को तोड़ देंगे बेरहम दुनिया वाले
जीना अगर है तुझको पत्थर जिगर बनाले
हो नेक आदमी तो कहते हैं लोग पागल
शैतान बन जा तू भी माथे तिलक लगाले
नादान आजकल है पाखण्ड का ज़माना
तू भी जटा बढ़ा ले, धूनी कहीं रमा ले
इन्सान बनके काफ़िर कहला रहा है क्यों तू
तस्बीह भी घुमाले, कृपाण भी उठाले
अपनी ही जान देने में क्या है अक्लमंदी
उन ज़ालिमों को 'अर्पित' उनकी तेरह सताले
-------------------------------------------------अर्पित अनाम

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