कुर्बानियां देने का ठेका ही हमारे पास है हक पराया लूट लें वो इसकी उनको आस है --अर्पित अनाम
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Showing posts from June, 2012
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हैवानियत से इस जहां में अनजान कोई न मिला खोजने तो थे फरिश्ते, इंसान कोई न मिला आश्रमों में मिल जाएं आडम्बर ओढ़े बहुतेरे रावण ओ' कंसों को मरे भगवान कोई न मिला शेर घूमता रहा शिकारियों की खोज में मरने को बेचैन था मचान कोई न मिला उमड़ते रहते हैं यूँ टूटे हृदय में हर वक्त टकराए जो आहों से तूफान कोई न मिला ज़ख्मी ये सीना पड़ा है तीर भी अब पास हैं छोड़ दें हम भी मगर कमान कोई न मिला अज़ब ये दुनिया हुई है अज़ब इसकी दास्तां हैं सहज सब ही यहां हैरान कोई न मिला ---------------अर्पित अनाम---------------
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मानवों से आज मानव हो रहा बेहाल है भूल मानव धर्म अपना दुष्ट चलता चाल है कुछ व्यवस्था ही बनी ऐसी कि हैं भयभीत सब रक्षकों का यूँ तो कहने को बिछा इक जाल है यूँ अकड़ कर चल रहे मनो खुदा हैं बस वही हैं भली टांगें मगर टेढ़ी ही टेढ़ी चाल है बेबसी का घोंट कर दम खून सारा पी लिया पेट काटे जो पराये आज वह प्रतिपाल है साथ देने की सदा सुनकर तो आए वह मगर सुर में सुर कैसे मिले जो बेसुरी सी ताल है शक भी कोई क्या करे 'अर्पित' भी अर्पित हो गया एक दाना ही नहीं काली ही सारी दाल है . --------------अर्पित अनाम----------
नेक कर्म
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कर्म करले नेक फिर बीता न कोई पल मिले होगा जैसा कर्म जिसका वैसा उसको फल मिले दुश्चरित्रों की भी सह लो है इसी में उच्चता बल न सहने का यदि तो घुन-घृणा को बल मिले रास यदि आई न दुनिया तो रुदन यह किसलिए हर समस्या का यहाँ संघर्ष ही से हल मिले आग लग जाने पे खोदा भी तो क्या खोदा कुआं बात तो तब है शमन को आग के जब जल मिले लाख गहराई में ढूंढो श्रम है वो सारा वृथा हाथ मोती क्या लगे जब तक न जल का तल मिले जीत सकते हो हृदय 'अर्पित' सरल व्यवहार से बात अचरज की नहीं जो छल के बदले छल मिले --अर्पित अनाम www.arpitanaam.facebook.com